नज़राना इश्क़ का (भाग : 14)
सुबह हो चुकी थी, चिड़ियों के मधुर कलरव से वातारवरण मंत्रमुग्ध सा हो रहा था। रोज ही की तरह जाह्नवी आज भी निमय को जगाने में लगी हुई थी, मगर रोज की तरह आज भी उसकी सारी कोशिशें नाकाम हो रही थीं। लाख कोशिशों के बाद भी जब वह नहीं जगा तो जाह्नवी ने उसकी कमर पर लात रखकर धकेलते हुए उसके बेड से नीचे गिरा दिया मगर मजाल कि निमय कसमसाया तक हो, वह अपने चादर में लिपटा जैसे का तैसा सोता रहा, बल्कि उसके खर्राटों का स्वर और बढ़ गया।
"ओये घोंचू उठ जा बे…! तेरे चक्कर में अगर बस छूटी ना तो देख लियो….!" जाह्नवी उसकी पीठ पर पैर टिकाते हुए बेड पर बैठते हुए बोली। "उठ जा मेरे काले काव्वा….तोहे मैं परदेश ले जावा, बेच के मुर्गी पावां… उठ जा…. काले काव्वा!" उटपटांग हरकते करते हुए वह बेड पर बैठी हुई उसकी ओर देखने लगी।
"बस… मेरी बस तो… क्या कहा तूने…अब बस कर मेरे कान से खून निकलने वाला ही है...!" चादर फेंकता हुआ निमय दोनों कान में उंगली डाले हड़बड़ाहट भरे स्वर में बोला। "तू मुझे उतने ऊपर क्यों दिख रही है? मेरा बेड कहा गया?" निमय हैरानी से घूरते हुए बोला।
"बेड तो यही है जनाब, मगर आप कुम्भकर्ण से शिक्षा ग्रहण करने में इतने व्यस्त थे कि….!" जाह्नवी बड़े सहज भाव से बोली।
"मतलब तूने मुझे गिराया है…!" निमय आँखे फाड़कर उसे घूरने लगा।
"जो पहले से ही इतना गिरा हुआ है, उसे और कौन गिरा सकता है...?" जाह्नवी ने जोर जोर से हँसने के साथ अपना मुंह छिपाते हुए कहा।
"रुक तुझे तो अभी बताता हूँ मैं…!" निमय उठते हुए उसकी ओर झपटा।
"भाई तुझ पर मेरा उधार बाकी है, पूरे दो सौ चॉकलेट्स का!" जाह्नवी खड़ी होती हुई शिकायती लहजे में बोली।
"और ये कब हुआ? मतलब मैंने भला कब उधार लिया है तुझसे?" निमय हैरानी से देखते हुए उसकी ओर बढ़ा।
"आगे नहीं बढ़ना, मेरी बात सुन… तूने कहा था महीने भर जगाने के सौ चॉकलेट्स देगा और लास्ट दो महीने से मुझे अपने पैसों से खरीद के खाना पड़ रहा है!" जाह्नवी पीछे हटते हुए उस को इशारे से रोकते हुए बोली।
"हे राम! लगता है तू गलत घर में पैदा हो गयी है… कितना पक्का हिसाब है रे तेरा..! तुझे तो…..!" निमय अपने बाल नोचते हुए आश्चर्य से भरा हुआ आँखे फाड़-फाड़कर उसे हुए बोला। "मगर मैंने ऐसा कभी कुछ न कहा, एक तो मेरी नींद खराब करो ऊपर से खर्चे भी मैं करूँ… सारे दुख मुझे ही क्यों भगवान…!" निमय छत की तरफ देखते हुए दुःखी स्वर में बोला।
"देखना अभी भगवान जी छत फाड़कर आएंगे और तेरा मुँह तोड़ देंगे.. झूठा कहीं का…?" जाह्नवी ने गुस्से से मुँह बिचकाते हुए कहा।
"चल न, आज तो तेरा मुँह टूटने की बारी हैं…!" निमय उसे खींचकर बाहर ले जाते हुए बोला।
"उसी के लिए जगाने आयी थी कमरचिमकट्टू…!" कहते हुए जाह्नवी हाथ छुड़ाकर बाहर की ओर भागी।
"अब ये क्या होता है किम-चिम-छिछी…!" निमय ने नाक सिकोड़ते हुए कहा।
"अभी तुझे पता चल जाएगा जब मैं तेरा मुँह तोड़ूंगी…!" कहते हुए जाह्नवी लड़ने की मुद्रा में तैयार होकर खड़ी हो गयी।
"संभल के…! देखना कहीं उधर से चूहा न निकल आये..!" निमय ठिठोली करता हुआ बोला। फिर दोनों भाई बहन अपने प्रैक्टिस में व्यस्त हो गए।
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रोज की तरह अलार्म को ठोक बजाकर फरी भी उठ चुकी थी। दांत भींचते हुए टूथपेस्ट निकालकर जल्दी जल्दी ब्रश करते हुए बाथरूम में घुस गई। किचेन में चाय बनकर तैयार होने को थी, बड़ी तेजी से नहा धोकर उसने अपनी प्रार्थना पूरी की और गैस चूल्हे से चाय निकालकर कप में भरने लगी। कप में चाय भरते ही वह फुर्ती के साथ तैयार हुई। फरी एक ऐसी लड़की थी जो प्राकृतिकता को ही खूबसूरती मानती थी, इसलिए आँखों में काजल और माथे पर एक छोटी बिंदी के अलावा कोई सिंगार नहीं करती थी। मेकअप से तो जैसे उसका दूर दूर तक कोई नाता न था.. मगर बस बिंदी में भी फरी किसी परी से कम न लगती थी।
"ओह्ह बाबा को कॉल कर लेती हूँ, वो भी पता न क्या सोच रहे होंगे.. शायद उनको लगता होगा कि मैं उनसे भी दूर जाना चाहती हूं। पर वो ऐसा क्यों सोचेंगे, वो बाबा हैं मेरे! मैं उसने बात कर लेती हूँ।" कहते हुए फरी चाय का कप सामने की टेबल पर रख कर उनको कॉल करने लगी।
"हेलो बाबा!" उधर से कॉल रिसीव होते ही फरी ने पूछा।
"बाबा यहां नहीं हैं…!" उधर से खरखराती हुई आवाज उभरी, फरी के पूरे शरीर में सनसनी फैल गयी।
"आप कौन…!" फरी ध्यान से सुनने की कोशिश करते हुए बोली।
"आपको बाबा से काम है ना? जब वो आएंगे तब मैं उनको बता दूंगा।" कहते हुए उसने कॉल कट कर दिया।
"ये कौन था यार.. पहले से मूड की ऐसी तैसी हुई पड़ी थी और अब ये दही कर गया। ठीक है मैं बाबा से शाम को बात कर लुंगी।" कहते हुए फरी ने फ़ोन को हैंडबैग के हवाले किया और चाय पीने लगी। मगर न जाने क्यों उसे बार बार ऐसा लग रहा था जैसे उसने उस लड़के की आवाज पहले भी कहीं सुना हुआ था, जबकि बाबा अकेले रहते थे, फिर ये कौन हो सकता था? फरी के दिमाग उथल पुथल मची हुई थी।
"ये सब छोड़, जल्दी चल फरी वरना आज फिर बस छूट जाएगी!" फरी खुद ही को समझाते हुए बोली और जल्दी से चाय खत्म करते हुए अपने कमरे में भागी।
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अपने आप से बातें करते हुए फरी अपने बस स्टॉप पर पहुचती जा रही थी, वह रोज यहीं से बस पकड़कर अपने कॉलेज को जाती थी। इस वक़्त उसके कॉलेज की ओर जाने वाली बस नजदीक आती हुई दिखाई दी, उसने एक कान में इयरफोन लगाकर फ़ोन को हैंडबैग में रख लिया। अब तक बस उसके काफी नजदीक आ चुकी थी। यह बस रोज इस समय पर आने वाली बस से अलग थी, उसकी डेंटिंग पेंटिंग बिल्कुल नई थी, जिससे बस चमक रही थी, बस के सामने के शीशे पर "राजपूत ट्रैवेल्स" लिखा देखकर फरी का माथा ठनका।
"क्या अब वो इस शहर में भी बस चलवाने लगे? क्या मुझे सुकून से जीने का कोई हक नहीं है? आखिर वो बार बार मेरी ज़िंदगी में घुसने की कोशिश क्यों कर रहे हैं। मुझे वैसी ही नार्मल बस से ही जाना है। वो चाहें पूरी दुनिया खरीद लें मगर फरी के दिल में उनके लिए न कोई स्थान था न ही कभी बन पाएगा… दौलत के नशे में डूबे हुए लोग…!" फरी के मुख से तिस्कृत स्वर निकला। अब तक बस उसके बिल्कुल पास आ चुकी थी।
"मैम आपको कहाँ जाना है?" कंडक्टर ने बड़े अदब से पूछा।
"कही नहीं!" फरी ने जबरदस्ती मुस्कुराते हुए कहा और तेजी से आगे बढ़ते हुए कल वाले बस स्टॉप पर जाने की सोचने लगी। चलते चलते उसके दिलोदिमाग पर अनेकों ख्यालों के बवंडर उठ रहे थे जिनमें फरी खोई जा रही थी।
'मेरी माँ करुणा… जिसके लाइफ की सबसे बड़ी गलती यही थी कि उन्होंने एक ऐसे इंसान से प्यार किया जिसे उनके प्यार की कोई कदर ही नहीं थी। वे शायद दौलत के कारण मेरी माँ को पाना चाहते थे और जब दौलत मिल गयी तो फिर …. उसे एक बेमौत की मौत मरने के लिए छोड़ गए..! मैं छोटी सी… माँ... माँ…! पुकारकर न जाने कितने घंटो तक रोई तब वे मुझे चुप कराने तक नहीं आये..! लोगों को लगता है कि दौलतमंद घर की बेटी है तो कितना सुखी रहती होगी.. मगर दुनिया के सारे तक़लीफों की जड़ यही दौलत है..! वरना आज मेरी माँ मेरे पास होती…! मेरी माँ को मुझसे छीनकर आपने अपनी बेटी भी खो दी है बड़े साहब..! अब ये बेकार के प्रयत्न करना बंद कर दीजिए..! मैं तंग आ चुकी हूं इससे.. जहां कहीं भी जाऊं कोई न कोई ऐसा होता है जो मुझे आपके नाम से जोड़ता है.. मैं आपसे नफरत नहीं करती बड़े साहब..! आप तो मेरी नफरत के भी काबिल नहीं हैं। मुझे दुनिया में सिर्फ एक चीज से प्रॉब्लम है.. दौलत के नशे में झूम रहे व्यक्ति से..!" मन में उमड़ रहे हजारों ख्यालों में उलझी फरी की आँखों से आँसू बह निकले। अब तक वह गली को क्रॉस करके हाईवे पर पहुँच चुकी थी मगर अपने ही ख्यालों में खोए होने के कारण उसे कुछ एहसास ही न रहा, उसके आंसू अनवरत बहते जा रहे थे, माँ की याद आते ही उससे कुछ भी सहन नहीं हो पाता था। अपने ख्यालों के भंवर में डूबी फरी कब बीच सड़क पर पहुंच गई उसे कुछ पता न चला, सामने की ओर से एक कार फुल स्पीड में तेजी से हॉर्न देते हुए उसकी तरफ बढ़ी चली आ रही थी, फरी ने जब आँखे मलते हुए यह देखा तो उसे कुछ भी समझ न आया, कार अब उसके बिल्कुल पास आ चुकी थी, तभी उसे जोर का धक्का लगा, किसी ने उसे बाहों में पकड़ते हुए सड़क के दूसरी ओर छलांग लगा दिया, कार वाले में ब्रेक लगा कर स्पीड कम किया मगर जैसे ही उसने देखा कि एक्सीडेंट होने से बच गया वह और तेजी से वहां से भाग निकला।
"त...तुम!" फरी ने हैरानी से आँख खोलते हुए कहा, उसने डर के मारे अपनी आँखें बंद कर ली थी। जब उसे सबकुछ ठीक से समझ आने लगा तो उसे महसूस हुआ निमय ने अब भी उसे बाहों में जकड़ा हुआ था। "अ…आप…!" फरी ने हड़बड़ाते हुए कहा।
"त..तुम ही बोलो, चलेगा..!" निमय ने उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा।
"छोड़िये मुझे..!" फरी ने उसके हाथों को देखते हुए कहा, निमय को एहसास हुआ कि वह अपनी बाहें खोलना ही भूल गया यानी फरी अब तक उसकी बाहों के कैद में थी, वह शरम से पानी पानी हो गया, और हाथ छोड़ते हुए सिर घुमाकर मुँह दूसरी तरफ कर लिया। यह सब इतनी जल्दी हुआ था कि जाह्नवी अभी रोड क्रॉस कर पाई थी, उसके हाथों में निमय का बैग था।
"क्या हुआ घोंचू..! इतना तेज भागकर कौन सा गोल्ड मेडल जीतने चला थे जो अपना बैग बीच रास्ते मे पटक दिया।" जाह्नवी उसके हाथ में उसका बैग पकड़ाते हुए बोली। फरी का फेस दूसरी ओर था इसलिए जाह्नवी ने उसपर ध्यान नहीं दिया।
"कुछ नहीं घोंची..! व...वो हमने रेस लगाई थी न?" निमय अपना सिर खुजाते हुए तिरछी निगाहों से देखता हुआ, उसके साथ फरी के विपरीत दिशा में चलता हुआ बोला।
"कब? और रेस का रूल ये था क्या कि तेरा बोझ भी मैं ढोउंगी?" जाह्नवी ने आँखे तरेरते हुए कहा।
"देख जानी सब चलेगा पर तू ऐसे किसी को बोझ नहीं कह सकती..!" निमय ने सड़ा सा मुँह बनाते हुए कहा।
"उल्ले लुल्ले लूले…! बत्ते तो बुला लद दया..!" जाह्नवी ने तुतलाते हुए नाक पर अंगूठा रख उंगलिया नचाते हुए उसे चिढ़ाते हुए बोली।
"अब क्या मैं अपनी बहन को इत्तू सा सता भी नहीं सकता!" निमय तर्जनी अंगुली और अंगूठे को पास लाते हुए बच्चे की तरह मासूमियत से बोला।
"वाह..! आज अलग लेवल का प्यार आ रहा है, आखिर राज क्या है इस झूठी मोहब्बत का..!" जाह्नवी ने निमय को चिढ़ाना जारी रखा, फरी दूर से इन दोनों को देख रही थी मगर उसने इस वक़्त इनके पास आना ठीक नहीं समझा।
"तू जासूसी करना बंद कर रे…! हे राम मेरे जीजू का क्या होगा…? वो बेचारा तो धरती पर ही स्वर्ग जाने के सपने छोड़ देगा…!" निमय मुँह खोलकर हाथ रखते हुए ऐसे बोला, मानो कितना ही बुरा होने वाला हो।
"उसको तो मैं देख लुंगी, फिलहाल तुझे सीधा कर दूं ताकि मेरी होने वाली भाभी को धरती पर ही नरक के दुख न झेलने पड़े…!" जाह्नवी ने मुँह बनाते हुए कहा।
"उफ्फ ये लड़की कितना लड़ती है यार… चल अच्छा अब बस आने वाली है।" निमय ने कहा। उसके मन में अब भी सिहरन भरी हुई थी, डर के मारे रोंगटे अब तक खड़े थे, फरी के स्पर्श से उसका तन मन सब रोमांचित था, मगर उसको कुछ हो जाने के एहसास ने उसकी धड़कने बढ़ा दी थी उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे पर वह जाह्नवी के सामने कुछ जाहिर नहीं होने देना चाहता था। यही हाल फरी का भी था, मगर मौत के डर का साया भी उसके करीब नहीं फटक पाया था। वह बस निमय के बारे में सोच रही थी कि कैसे उसने अपने जान की बाजी लगाकर भी उसे बचाने चला आया, जबकि वो उसे ठीक से जानती तक नहीं। फरी का रोम रोम उसके स्पर्श से रोमांचित था, वह अब तक निमय को आभार भरी नजरों से देख रही थी मानों उसे शुक्रिया कहना चाहती हो। थोड़ी देर में बस आ गयी, तीनो एक साथ बस में चढ़ गए, थोड़ी देर बाद बस वहां से चल पड़ी।
क्रमशः...
shweta soni
29-Jul-2022 11:38 PM
Nice 👍
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🤫
27-Feb-2022 01:40 PM
ओह निमय अभी भी खुशी से सदमे में है।
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मनोज कुमार "MJ"
27-Feb-2022 08:57 PM
Jii thank you so much ❤️😀
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सिया पंडित
21-Feb-2022 04:27 PM
Very nice
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मनोज कुमार "MJ"
27-Feb-2022 08:57 PM
Thank you so much ma'am 🥰
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